जैसे जैसे दिन बीतते हैं,पर्वों की रफ्तार भी उसी तेजी से आती रहती है. एक पर्व जाती भी नहीं की दूसरी पर्व आकर हमारे सामने खड़ा हो जाती है. यही तो भारतवर्ष की कहानी है और इसलिए भारत खुशमिजाजों का देश कहे जाते है. हरियाली, प्रेम,शांति,भाईचारा इस देश में दिखाई पड़ती है. हमारे चारों तरफ पर्वो के कारण खुशनुमा रहता है, इसी क्रम में महासप्तमी पर्व आती है
आइए जानते है कि महासप्तमी क्यों मनाई जाती है और महा सप्तमी कैसे मनाते हैं ?
दुर्गा महासप्तमी क्या है - What is Maha Saptami in Hindi
नवरात्रि से आने वाले सातवें दिन को महासप्तमी कहा जाता है. यह दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है. विशेषकर मां दुर्गा की शक्ति के लिए इसी दिन से मां दुर्गा की विशेष पूजा पाठ की जाती है.
नवरात्रि का सबसे महत्वपूर्ण दिन है. भक्त मां दुर्गा की आशीर्वाद पाने के लिए मां दुर्गा के पास प्रार्थना करने जाते हैं. इसी दिन मां दुर्गा का चेहरा भी खोला जाता है और दर्शन करने के लिए भक्त उमड़ते हैं. हिंदी और अंग्रेजी में महा सप्तमी ( Maha Saptami ) कहा जाता है. इन्हें दुर्गा सप्तमी, महा सप्तमी, नवरात्रि सप्तमी, मां दुर्गा सप्तमी, नवरात्र का सातवां दिन के नामों से भी जाना जाता है.
मां दुर्गा की शक्ति का विशेष दिन को नवरात्र महा सप्तमी के रूप में जानते हैं. नवरात्रि के छठे दिन के बाद तथा नवरात्रि के आठवें दिन के पहले आता है. मां दुर्गा के सातवें रूप की पूजा की जाती है,जिसे काल रात्रि कहते हैं. इस दिन से महा पूजा की शुरुआत होती है.
दुर्गा महासप्तमी कब मनाई जाती है
महा सप्तमी वर्ष में दो बार मनाई जाती है. पहला चैत्र महा सप्तमी को तथा दूसरा अश्विन महा सप्तमी को.
हिंदू पंचांग के अनुसार से महा सप्तमी अश्विन के माह में मनाया जाता है. वही ग्रेगोरियल कैलेंडर के अनुसार से सितंबर या अक्टूबर के महीने में अश्विन महा सप्तमी मनाई जाती है.
वर्ष 2022 में अश्विन महा सप्तमी में कब है
वर्ष 2022 में अश्विन महा सप्तमी 2 अक्टूबर 2022 यानी रविवार के दिन पड़ रहा है.
तिथि - 2
माह - अक्टूबर ( दसवाँ माह )
वर्ष - 2022
दिन - रविवार
अक्टूबर - पहला रविवार
दुर्गा महासप्तमी क्यों मनाई जाती है
कालरात्रि मां दुर्गा का सातवां अवतार कहा जाता है. कालरात्रि के रूप लेने के बाद राक्षसों के लिए काल बनकर इस दिन आयी थी. सातवें दिन से काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. मां दुर्गा भयंकर रूप में थी.
माता पार्वती मां दुर्गा का रूप में आई थी. मान्यता है कि शिवजी पार्वती से अपने भक्तों की सलामती और दुष्ट राक्षसों से रक्षा करने को कहे थे. पार्वती उन्हीं के बातों का मान रख कर मां दुर्गा का रूप धारण किए. शिम्भविशुम्भ का वध किया जब कालरात्रि माता ने रक्तबीज को मारा तो ब्रह्मा जी के वरदान की वजह से उनके शरीर से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए इसके तुरंत बाद रक्तबीज पर प्रहार किया और उन से निकलने वाले रक्त को अपने मुंह में भर लिए अन्त में रक्तबीज का गला काटकर उसका वध किया सभी देवताओं ने उनका आदर सम्मान किया और मां दुर्गा को धन्यवाद दिया.
महासप्तमी मे महाशक्ति का उपयोग किए इसलिए सातवें रूप को उत्पन्न किए इस दिन माता को कई शक्तियों का सामना करना पड़ा. मां दुर्गा उनका वध करने के पूरा मन बना लिए थे, इसलिए कालरात्रि के नाम से इस दिन जानी जाती है. सातवें दिन का रूप सबसे अलग एवं शक्तिशाली मानी जाती है. कई बड़ी शक्ति का उपयोग करना शुरू कर दिया था.
महा सप्तमी का क्या महत्व है
नवरात्रि के सातवें दिन महासती का विशेष महत्व होता है. इसी दिन नव पत्रिका का महत्व भी है. मां दुर्गा कालरात्रि के रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं. उन्हें कई प्रकार के समस्याओं से छुटकारा देते हैं. मां दुर्गा की नजर में सब एक जैसे हैं, इसलिए भक्त महा सप्तमी के दिन कालरात्रि माता से विशेष पूजा प्रार्थना अर्चना करते हैं.
महाशक्ति से लेकर महा दसवीं तक मां दुर्गा जी के लिए विशेष एवं पवित्र दिन माना जाता है. पूरी शक्ति एवं पूरी श्रद्धा से इस त्यौहार को मनाते हुए हर्षित होते हैं. अपने साथियों संघ इस दिन महिमा करते हैं. इस दिन से मां दुर्गा का महा पूजा पाठ आरंभ हो जाता है.
महा सप्तमी के दिन नव पत्रिका की पूजा की जाती है. अर्थात की 9 प्रकार के पतियों को जोड़कर ऊन से बनने वाले गुच्छे को पवित्र कर के दुर्गा जी के चेहरा खोला जाता है. इसी कारण इसे महापूजा कहा जाता है. इस दिन असलाम कारी परंपरा चलती आ रही है. उसके बाद सुबह शाम दुर्गा पाठ एवं दुर्गा मां की आरती होती है. मां के दरवाजे खोल देते हैं. कई प्रकार के कष्टों से निजात दिलाते हैं. उनका जीवन नया में बदल देते हैं. घर परिवार की सुख समृद्धि एवं सौभाग्य देते हैं.
महा सप्तमी का अर्थ होता है- मां दुर्गा के सातवें रूप का विशेष दिन जिसे माता कालरात्रि के रूप में जानते हैं, मतलब कि मां दुर्गा का शक्तिशाली रूपो में से एक.
भारत देश के हर एक कोने में यह पर्व मनाया जाता है. जहां जहां हिंदू भाई बहन रहते हैं, वहां इसे विशेष रूप से मनाते हैं. भारत के कुछ विशेष राज्य बंगाल,बिहार,महाराष्ट्र इत्यादि जैसे महत्वपूर्ण राज्य में बड़ी धूमधाम से एवं हर्ष उल्लास के साथ मनाते हैं.
महा सप्तमी कैसे मनाते हैं
यह हिंदुओं के विशेष एवं महत्वपूर्ण दिन है. बहुत लोग सुबह उठते ही गंगा स्नान करने जाते तथा मां दुर्गा के मंदिर में पूजा करते है. मां का मुखड़ा भी इसी दिन खुलते हैं. दुर्गा पंडाल बन कर तैयार हो जाता है और भक्तों के लिए दुर्गा दर्शन का सौभाग्य मिलता है. इस दिन सुबह से मां दुर्गा का गाना एवं भक्ति भाव दिखाएं सुनाएं देने लगते हैं. बहुत दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं सुबह शाम दुर्गा पाठ आरती जागरण शुरू हो जाता है. मां की महिमा निराली हो जाती है.
महा सप्तमी मनाने को हर एक राज्य की परंपरा अलग है. गुजरात और दक्षिण भारत में गरबा का आयोजन होता है. आकर्षक पंडाल एवं भूमि पंडाल बना कर मां दुर्गा की स्थापना करते हैं. चारों तरफ रंगीन लाइट दो सजावट से ढका नजर आता है. मंदिर में पूजा पाठ होती रहते हैं. हिंदुओं का पर्व इसी दिन से लगातार होना शुरू हो जाता है. बाजारों में, खेतों में झुलुआ एवं मेला लगता है. सभी परिवार संघ मस्ती में जाकर मेला घूमते हैं. पंडित एवं हिंदू धर्म गुरु सुबह-शाम मां दुर्गा का पाठ कर सुनाते हैं, यह सभी हिंदू के विधि-विधान अनुसार महा सप्तमी का त्योहार मनाते हैं.
महा सप्तमी तथा पूजा विधि
• इस दिन नव पत्रिका की पूजा करने के लिए नौ तरह के पेड़ के पत्ते अलग-अलग लेते हैं.
• इसमें शामिल है बेल का पत्ता,जाओ का पत्ता, कच्ची का पत्ता, धान का पत्ता,केला का पत्ता,हल्दी का पत्ता,अशोक का पत्ता, अनार का पत्ता तथा अरुम का पत्ता सम्मिलित कर लेते हैं.
• इसलिए एक साथ जोड़कर पत्ते को धो देते हैं और गंगाजल से स्नान कर शुद्ध करते हैं.
• नव पत्रिका को लाल साड़ी से पहनाकर सजाया जाता है.
• उसके बाद मां की मूर्ति को पंडाल में स्थापित किया जाता है.
• लाल चंदन और फूल वाला चढ़ाते हैं.
• अंत में मां दुर्गा की आरती कर प्रसाद वितरण किया जाता है.
महा सप्तमी से क्या संदेश मिलता है
महा सप्तमी हमें ऐसे अन्य सीख देती है, जो हमसे अनजान रहते हैं या हमारे जीवन में समझने का मौका ही नहीं मिलता है. कहने को तो महा सप्तमी कालरात्रि माता के रूप की पूजा होती है ,जो देखने में भयंकर एवं डरावना सा लगती है, लेकिन जितनी डरावने दिखती है माता कालरात्रि उससे कई गुना उनके दिल कोमल मानी जाती है.
जो व्यक्ति अपने क्रोध में या गुस्से में आती है तो वह यह भूल जाते हैं कि वह क्या कर रहे हैं, दूसरों से कैसा व्यवहार करना चाहिए. लेकिन माता कालरात्रि शिवजी के शरीर पर पैर रखे तो उनके यह आभास हो गया उन्हें पता चल गया कि मेरे पति देव हैं तो पार्वती अपने रूप में आकर शंकर भगवान से माफी मांगी.
उसी प्रकार से सारे मनुष्य को कितना भी गुस्से क्रोधित या भूत सवार क्यों ना हो, अपनी मर्यादा से कभी आगे नहीं बढ़नी चाहिए. क्योंकि जो चीज शांति,एकता,भाईचारे से ना होता हो, वो काम कभी सफल नहीं होता है.