भारत एक ऐसा देश है जहाँ की संस्कृति भिन्न-भिन्न रहने के बावजूद दूसरों के प्रति आदर और प्रेम भरा रहता है.
धर्म का सबसे छोटा समूह जो भारत में कई वर्षों से रह रहे हैं. उनको अपने त्योहारों एवं उत्सव के प्रति काफी लगाव रहता है. इनके अपने समुदाय में अपने रीति रिवाज होती है. उसी के विधान से ही उत्सव मनाते हैं.
भारत में धर्मों का सबसे छोटा एवं कम आबादी वाला संख्या जो इनके लिए महत्वपूर्ण हो जाता है . आज इन्हें विशेष त्योहारों को बताने वाले हैं. जो इस समाज से एवं धर्म से जुड़े हुए लोगों को जाननी चाहिए.
1. पारसी नववर्ष क्या है ?
पारसी धर्म एवं पारसी धर्म के भगवान के अनुसरण करने वाले लोगों को पारसी कहा जाता है . भारत में इसका सबसे छोटा समूह रहता है जो कुछ ही जगह पर निवास जाते हैं .
इस धर्म को ईरान देश का प्राचीन धर्म माना जाता है . पारसी धर्म में कम ही ऐसे त्योहार होते हैं जिससे काफी जोश एवं उमंग के साथ मनाते हैं .
पारसी नववर्ष पारसी समुदाय का मुख्य पर्वों में से एक है . यह त्यौहार नई चेतना नई जोश नई उमंग नई ऊर्जा भरने के लिए आता है . इसे कई नामों से भी जाना जाता है हिंदी में पारसी नया साल या पारसी नववर्ष के रूप में जानते हैं अंग्रेजी में पारसी न्यू ईयर (Parsi New Year) के नाम से जाना जाता है . अन्य जगहों पर जमशेदी , नवरोज , पतेती , खोरदाद साल , नवरोज या नौरोज जैसे मुख्य नामों से पुकारा जाता है .
यह ईरानी का नया साल का दिन होता है . यह पर्व प्रकृति प्रेम को दर्शाता है ईरानी पंचांग के अनुसार से साल के पहले महीने का पहला दिन को नए साल की शुरुआत होती है . सिर्फ पारसी धर्म में एक साल में 360 दिन होता है बाकी बचे 5 या 6 दिनों में गाथा करते हैं .
गाथा यानी अपने पूर्वजों को याद कर उनके आत्मा की शांति के लिए पूजा पाठ करते हैं . इन्हीं बचे दिनों में अपने आत्मा को शुद्ध कर नए साल का स्वागत करते हैं .
मानव जीवन को शुद्ध बनाए रखने के लिए ईश्वर से कामना करते हैं . यह पारसी समुदाय के लिए खुशी का दिन होता है जिसे पारसी नया वर्ष के रूप में देखने को मिलता है .
2. पारसी नववर्ष कब मनाया जाता है ?
पारसी नववर्ष या पारसी न्यू ईयर ईरानी कैलेंडर के अनुसार से ही मनाया जाता है . पारसी धर्म ईरान का प्राचीन धर्म माना जाता है .
ईरान का शहंशाही नाम के पंचाग के अनुसार से प्रत्येक वर्ष अगस्त के महीने में मनाया जाता है . गेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक भी अगस्त के महीने में ही पड़ता है .
यह दिन पूरे पारसी समाज के लोगो के लिए महत्व होता है . प्रत्येक वर्ष ज्यादातर अगस्त के महीने में पारसी नव वर्ष मनाया जाता है .
वर्ष 2022 में पारसी नववर्ष कब है ?
वर्ष 2022 में पारसी न्यू ईयर 16 अगस्त की तारीख के दिन पड़ रहा है . यानी यह मंगलवार के दिन पड़ रहा है .
तिथि - 16
माह- अगस्त ( आठवां महीना )
वर्ष - 2022
दिन- मंगलवार
अगस्त - तीसरा मंगलवार
3.अगले 5 वर्ष का पारसी नववर्ष
वर्ष तिथि दिन
2022 16 अगस्त मंगलवार
2023 16 अगस्त बुधवार
2024 15 अगस्त गुरुवार
2025 15 अगस्त शुक्रवार
4. पारसी नववर्ष क्यों मनाया जाता है ?
कहा जाता है इस दिन पारसी समुदाय के वीर पुरुष और योद्धा नामक जमशेद ने ईरानी कैलेंडर को पहली बार ईरानी लोगों से रूबरू परिचित और जानकारी दिए थे . इसे ईरान का वार्षिक और पारसी लोगो का वार्षिक कैलेंडर के रूप में दिया था .
ईरान के निवासियों और सरकार उनकी इस महान कार्य की सराहना भी किया था . इसे फारसी नव वर्ष भी कहा जाता है . यह पर्व फारस के राजा जमशेद की यादगार में मनाया जाता है . क्योंकि पारसी धर्म एवं पारसी के महत्व को काफी सम्मान दिलाया और बढ़ाया भी था .
पारसी समुदाय से कोई भी अच्छे काम करना पारसी समुदाय के लिए गौरव की बात होती थी .
ईरानी कैलेंडर में केवल 360 दिन ही एक साल के बराबर माना जाता है . बाकी दिन नए साल के आगमन के लिए अपने आप को हर प्रकार से तैयार करते हैं .
बुरे कामों बुरे विचारों को त्यागकर अच्छे विचारों को लाते हैं . इस उत्सव में हृदय को शुद्ध करने के साथ-साथ प्रकृति के ताजगी हरियाली और नए रूप में अपने आप को ढालता है . जिससे उनके जीवन में ढेर सारी खुशियां सुख समृद्धि और ढेरों सारी शुभकामनाएं लेकर आ सके .
पारसी त्योहार काफी कम होते हैं . ऐसे में पारसी नववर्ष पारसियों के लिए काफी महत्वपूर्ण हो जाता है . यह परंपराओं से चले आ रहे रीति-रिवाजों को जिंदा रखे हुए हैं . यह समाज क्रमबद्ध तरीके से पूजा-पाठ करते हैं .
इस दिन अपने पूर्वजों को याद कर उनके लिए एवं पारसी धर्म के संस्थापक महात्मा जरथुष्ट के आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना यज्ञ एवं श्राद्ध कराते हैं . पारसी नववर्ष पारसी समाज के धर्म के लोग ही मनाते हैं और एक दूसरे लोगों को बधाई देते हैं .
5.पारसी नववर्ष का महत्व
हर धर्म का अलग-अलग नववर्ष होता है . जिस तरह से अन्य धर्मों में नववर्ष का महत्व होता है उसी तरह पारसी नववर्ष का भी अलग अपना एक महत्व होता है .
खगोलीय घटनाओं के आधार पर ही ईरानी कैलेंडर को प्रकाशित किया गया था . विषुव के वक्त विषुवत रेखा की पट्टी पर सीधा पड़ता है . वृत्त पर दोनों ध्रुव के छोर का प्रकाश पड़ता है . इस दिन प्रकाश वृत्त के बराबर भाग में उतरी गुलाब तथा दक्षिणी गोलार्ध में पड़ता है . इस दिन पृथ्वी के हर एक भाग में दिन और रात दोनों बराबर होती है .
इन घटनाओं के अलग अलग मायने हैं इसे धार्मिक एवं खगोलीय घटनाओं को मिलाकर इसे महत्व दिया जाता है . इसे ही धर्म के अनुसार से पर वो की समय तिथि तय होती है . ईरानी कैलेंडर का पहला दिन लगभग 21 मार्च के करीब बसंत विश्व को पड़ता है . लगभग 11 वीं सदी के आसपास ही ईरानी कैलेंडर में कुछ सुधार किया गया उद्देश्य था कि साल के प्रथम दिन को इंगित करना नवरोज को बसंत विषुव के दिन ही साल का पहला दिन तय करना था .
इन्हीं अंतराल में ईरान के विशिष्ट विद्वानों ने साल के पहले दिन को निर्धारित करने के लिए परिभाषित किया कि वर्ष का पहला दिन वह होता है . जिस दिन मध्याह्न से पूर्व सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करता है .
इन्हीं विचारों पर मनन करने के बाद अधिकारिक रूप से तय किया गया . ईरानी कैलेंडर का पहला दिन जिसे हर साल नया वर्ष के रूप में मनाया जाता है .
ईरान से सटे हुए हिस्सों में तथा भारत के कुछ हिस्सों में महाराष्ट्र और गुजरात में पारसी समुदाय के लोग रहते हैं . वहां इसका महत्व को विशेष रूप दिया जाता है . भक्ति भाव एवं श्रद्धा के साथ अपने भगवान की पूजा करते हैं .
अपने पूर्वजों के आत्मा की शांति के लिए गाथा की पाठ करते हैं . इस समाज में अग्नि का विशेष महत्व होता है .
6. नवरोज का मतलब / अर्थ
नवरोज का अर्थ होता है नया दिन अर्थात नव का मतलब न्यू , नया तथा रोज का होता है दिन . नवरोज एक नाम है जो फारस के राजा हुआ करता था .
उन्हीं के नाम से ही नवरोज पड़ा नवरोज यानी पारसी समुदाय का नया साल का प्रथम दिन , पहला दिन को नवरोज कहा जाता है .
7. पारसी नववर्ष कैसे मनाते हैं ?
पारसी अपने पूर्वजों के याद को जिंदा रखे हुए हैं . पहले से चली आ रही विधि-विधान रिति रिवाज एवं पारंपरिक संस्कृति के अनुसार ही आज भी पारसी त्यौहार को मनाते हैं . पारसियों का यह त्यौहार काफी बड़े पैमाने पर मनाया जाता है . इस दिन लोग अपने समाज की सुख समृद्धि स्वास्थ्य और धन के लिए धर्मशाला में पूजा पाठ करते हैं .
इस पर्व को मनाने के लिए लोग काफी उत्साहित होते हैं . पूरे साल के लिए प्रार्थना करते हैं . जिसमें शांति खुशी दया का भावना दिखाई पढ़ सके .
पारसी नव वर्ष समुदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है इसलिए इसे आस्था श्रद्धा और विश्वास के पर्व के रूप में जाना जाता है . दिल में उमंग , जोश , प्यार , भाईचारा के साथ मनाते हैं।
इसे मनाने के लिए पहले से ही पूरी तैयारी कर ली जाती है . नववर्ष के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान ध्यान कर लेते हैं . घर के चारों तरफ साफ-सुथरा करके अगरबतियाँ जलाते है .घर को सुगंधित कर घर को शुद्ध करते हैं .
अपने घर एवं कमरों को सुगंधित फूलों द्वारा सजाते है . साथ में चमेली के फूल का भी उपयोग करते हैं . इसे शुभ माना जाता है इस दिन गुलाब के पानी से स्नान करते हैं इससे शरीर पवित्र हो जाता है .
• मनपसंद के नए कपड़े पहनते हैं .
• आकर्षित रंगोली बनाते हैं ताकि समृद्धि व भाग्य का दरवाजा खुल सके .
• इस मौके पर भारतीय समुदाय पारसी मंदिर अग्यारी जैसे पवित्र जगह पर पूजा पाठ करने जाते हैं .
• अपने समुदाय को शुभकामनाएं देकर खुशियां बांटते हैं .
• अपने सभी संबंधित लोगों के साथ मिलजुल कर पारसी नववर्ष को खुशी व शांति पूर्वक मनाते हैं .
• घर आने वाले मेहमानों को पवित्र गुलाब जल का छिड़काव करके उनका स्वागत एवं उनको शुद्ध करते हैं .
• दूसरे देशों से आने वाले समाज को पूरी सेवा देते हैं . ताकि उसे किसी प्रकार की परेशानी ना हो ऐसी परंपराएं पारसी समुदाय में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है .
• अपने सिर पर रुमाल से ढक कर अग्यारी मंदिर में प्रार्थना करते हैं .
• पारसी धर्म में अग्नि का विशेष महत्व होता है इसलिए चंदन की लकड़ी जलाकर अपने ईश्वर से प्रार्थना करते हैं .
8. पारसी नववर्ष का इतिहास
पारसी ईरान में जन्म लिया हुआ धर्म है जो धर्म परिवर्तन के कारण धर्म को बचाने के लिए उस देश को छोड़कर अन्य जगहों पर जाकर रहना पड़ा .
1380 ईस्वी पहले जब ईरान में धर्मांतरण किया जा रहा था तो काफी लोग इसे पसंद नहीं करते थे . तो कुछ पारसियों सुख शांति से जीवन यापन करने के लिए धर्म परिवर्तन का मन बनाया . तो कुछ लोग इसके उलट धर्मांतरण के खिलाफ थे .
वह अपने देश छोड़कर अन्य देशों में जाने को मजबूर थे . यहां पर रहकर आज अपने संस्कार को संभाले एवं सुरक्षित रखा है . ऐसे समाज की बड़ी बात यह होती है कि यह समाज धर्म परिवर्तन के बिल्कुल ही खिलाफ होते हैं .
पारसी अपने समाज को पहला स्थान देते हैं . इस समाज का कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे जगह या प्रांत से आता है . तो उसको सेवा भाव एवं उनके जनहित के लिए उसे पूरी व्यवस्था से लेकर सभी प्रकार की सुख सुविधाएं देने में मदद करता है . समाज की एकता के लिए कभी गलत राह नहीं अपनाते हैं .
जो संस्कार पहले से है वही संस्कार को अभी भी कायम रखना चाहते हैं . पारसी समाज अपने धर्म के प्रति पूरी निष्ठा आस्था रखने की पूरी कोशिश करते हैं . कई खास पर्वों पर अपने मंदिर में जा कर पूजा पाठ करते हैं . पारसी नववर्ष इस धर्म समाज का मुख्य पर्वो में सुमार है .
9. पारसी नववर्ष का आधुनिक युग
पुराने जमाने से चली आ रही परंपरा को बरकरार रखे हुए हैं . बहुत सारे परसी लेकिन कुछ अपने विकास एवं नौकरी करने के लिए कुछ पर से छिटक रोजी रोटी कमाने के लिए अपना स्थान बदल कर दूसरे प्रदेशों में रहने चले गए हैं .
लेकिन वह भी अपने परंपराओं पर चलकर ही पारसी नववर्ष का उत्सव मनाते हैं और अच्छे संदेशों को बांटकर खुशियां मनाते हैं . अपने धर्म के बारे में बातें करते हैं जिससे उनके विचार दूसरों से मेल खा सके और सुख शांति से जीवन यापन करने में आसानी हो सके .
आधुनिक युग कितना भी बदल जाए लेकिन पुरानी रीति रिवाज को कभी नहीं भूलते हैं कई वर्षों से चली आ रही विधि विधान से ही पूजा-पाठ एवं रहन सहन करते हैं अपने धर्म की संस्कृति पर चलकर ही जीवन जीते हैं एवं ऐसा कोई भी कार्य नहीं करते हैं जो उनके धर्म के विपरीत होता है.
पारसी नववर्ष केवल कुछ ही जगहों पर नहीं बल्कि जहां जहां इस समुदाय के लोग रहते हैं वहां एक साथ मिलजुल कर इस दिन को याद करते हैं ईरान देश के अलावा लेबनान इराक पाकिस्तान बहरीन ताजिकिस्तान और भारत जैसे देश में विशेष तरीके से एवं भव्य तरीके से पारसी नववर्ष का त्योहार मनाया जाता है इसे सामूहिक रूप में भी मनाया जाता है.
10. पारसी नववर्ष का संदेश
पारसी नववर्ष हमें नई सोच नई विश्वास के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है बुरे विचारों एवं बुरे आदतों को अपने जीवन में कभी भी प्रवेश न कर सके यह पर्व सभी के जीवन में आनंद और उल्लास से भर देते हैं अपनों एवं दूसरों के प्रति परस्पर भाईचारे एवं सौहार्द को मजबूत करती है प्रगति और खुशहाली में जीवन जीने का संदेश देती है .
पारसी समुदाय आपसी प्रेम एवं शांति का बहुत बड़ा मिसाल पेश करता है पारसी नववर्ष की गहरी बात यह है कि नवरोज समानता को दर्शाता है ।